Sunday, 20 May 2012

Kya khoya hai kya hai paya !






















क्या खोया है, क्या है पाया,

हर लम्हा, हर छन ये सोचा,
सोच सोच के मै  बढ़ आया !

लरता रहा हर पल मैं खुद से, खुद की ईच्छा खुद की आशा
क्या था लाया जो मै खोया, यहीं पे पाया, यहीं गवाया !

इस जीवन का खेल चक्र ये, तब मैं बिलकुल समझ ना पाया,
क्या खोया है, क्या है पाया !





-KGS




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